दिल्ली सल्तनत | Delhi Sultanate | All Important Facts | Study Panal
मोहम्मद बिन कासिम
मोहम्मद
बिन
कासिम, भारत
पर
आक्रमण
करने
वाला
प्रथम
अरब
मुस्लिम
था,
जिसने
सिन्ध
व
मुल्तान
को
(712
ई.
में)
जीत
लिया
था।
उस
समय
सिन्ध
का
शासक
ब्राह्मण
वंशी
राजा
दाहिर
था।
भारत
पर
प्रथम
तुर्क
आक्रमण
986
ई.
में
गजनी
के
शासक
सुबुक्तगीन
ने
किया।
महमूद गजनवी
महमूद
गजनवी, सबक्तगीन
का
पुत्र
था
और
अपने
पिता
की
मृत्यु
के
बाद
997
ई.
में
वह
गर्जनी
के
सिंहासन
पर
बैठा।
महमूद
गजनर्वा
ने
भारत
पर
1001
से
1027 ई.
के
बीच
17
आक्रमण
किए।
उसके
आक्रमणों
का
उद्देश्य
यहाँ
के
धन
को
लूटना
एवं
इस
धन
को
सहायता
से
मध्य
एशिया
में
विशाल
साम्राज्य
की
स्थापना
करना
था।
उसने
पंजाब
के
हिन्दुशाही
वंश
के
शासक
जयपाल
को
वैहिन्द
की
प्रथम
लड़ाई
(1001 ई.)
में
पराजित
किया।
वैहिन्द
की
द्वितीय
लड़ाई
(1008
ई.)
में
उसने
हिन्दुशाही
वंश
के
ही
आनन्दपाल
को
हराया।
1025 ई. में
उसका
सोमनाथ
के
शिव
मन्दिर
पर
आक्रमण
सबसे
प्रसिद्ध
है।
उसने
गुजरात
के
काठियावाड़
में
समुद्र
किनारे
स्थित
सोमनाथ
मन्दिर
से
भारी
मात्रा
में
सम्पत्ति
लटी
थी।
महमूद
गजनवी
ने
अन्तिम
आक्रमण
1027
ई.
में
आगरा
के
निकट
भेरा
के
दुर्ग
पर
किया
था।
महमूद
गजनवी
को
भारतीय
इतिहास
में
'बुतशिकन' (मूर्तिभंजक)
के
नाम
से
जाना
जाता
है।
महमूद
गजनवी
के
दरबार
में
दो
इतिहास
प्रसिद्ध
विद्वान
थे-
राजकवि
फिरदौसी
जिसने
'शाहनामा' लिखी।
अलबरूनी
जिसने
'तहकीक-ए-हिन्द' नामक
पुस्तक
लिखी।
मोहम्मद गोरी (1175-1206
ई.)
अफगानिस्तान
में
गजनी
वंश
के
पतन
के
बाद
शंशबनी
वंश
के
'गोरी
कबीले' ने
शक्ति
प्राप्त
करना
शुरू
कर
दिया।
मोहम्मद
गोरी
इसी
कबीले
का
शासक
था।
मोहम्मद
गोरी
ने
भारत
पर
प्रथम
आक्रमण
1175
ई.
में
मुल्तान
पर
किया।
उस
समय
मुल्तान
पर
करमाथी
जाँति
के
(मुसलमान
) शासक
थे।
1178 ई.
के
गुजरात
आक्रमण
के
समय
वहाँ
के
शासक
मूलराज
II
ने
गोरी
को
बन्दी
बना
लिया
था
लेकिन
बाद
में
छोड़
दिया।
उस
समय
दिल्ली
पर
चौहान
वंश
के
पृथ्वीराज
चौहान
तृतीय
का
शासन
था।
मोहम्मद
गोरी
और
पृथ्वीराज
चौहान
के
बीच
दो
लड़ाइयाँ
हुई-तराईन
का
प्रथम
युद्ध
(1191
ई.)
जिसमें
गोरी
की
प्र पराजय
हुई
तथा
तराईन
का
द्वितीय
युद्ध
(1192
ई.)
जिसमें
पृथ्वीराज
की
पराजय
हुई।
-तराईन
के
द्वितीय
युद्ध
के
बाद
मोहम्मद
गोरी
ने
दिल्ली
और
अजमेर
पर
कब्जा
कर
भारत
में
मुस्लिम
साम्राज्य
की
नींव
डाली अतः गौरी को
ही
भारत
में
मुस्लिम
साम्राज्य
का
संस्थापक
माना
जाता
है)।
1194 ई.
में
चन्दावर
के
युद्ध
में
मोहम्मद
गोरी
ने
कन्नौज
के
राजा
जयचन्द
को हराया।
.
दिल्ली सल्तनत
1206 ई.
से
लेकर
1526
ई.
तक
के
कुल
320
वर्षों
तक
के
काल
को
दिल्ली
सल्तनत
के
नाम
से
अभिव्यक्त
किया
जाता
है।
दिल्ली
सल्तनत
के
अन्तर्गत
पाँच
पृथक्
वंशों
का
शासन
रहा, जो
इस
प्रकार हैं
1. गुलाम
वंश
1206-1290 ई.
2. खिलजी
वंश 1290-1320 ई.
3. तुगलक
वंश
1320-1414 . ई.
4. सैयद
वंश 1414-1451 . ई.
5. लोदी
वंश 1451-1526 ई.
गुलाम वंश (1206-1290 ई.)
कुतुबुद्दीन ऐबक (1206-1210 ई.)
यह
मोहम्मद
गोरी
का
गुलाम
था
जो
बाद
में
सेनानायक
हो
गया।
पहले
इसकी
रोजधानी
लाहौर
थी
और
बाद
में
दिल्ली
बनी।
इसने
मलिक
तथा
"सिपहसालार
जैसी
उपाधियाँ
भी
धारण
की।
इसने
कुतुबमीनार
का
निर्माण
कार्य
प्रारम्भ
करवाया।
कुतुबमीनार
का
नाम
प्रसिद्ध
सूफी
सन्त
ख्वाजा
कुतुबुद्दीन
बख्तियार
काकी
के
नाम
पर
रखा
गया।
हसन निजामी
तथा
फ्रक-ए-मुदत्विर
को
ऐबक
का
संरक्षण
प्राप्त
था।
इसने भारत
की
प्रथम
मस्जिद
(कुव्वत-उल-इस्लाम)
दिल्ली
में
और
अढ़ाई
दिन
का
झोंपड़ा
अजमेर
में
बनवाया।
इसकी मृत्यु
लाहौर
में
चौगान
(पोलो)
खेलते
हुए
घोड़े
से
गिरकर
हुई।
इल्तुतमिश (1210-1236 ई.)
कुतुबुद्दीन
की
मृत्यु
के
पश्चात्
उसके
पुत्र
आरामशाह
को
सिंहासन
पर
बैठाया
गया, परन्तु
आरामशाह
अयोग्य
शासक
था।
इसलिए
कुतुबुद्दीन
के
दामाद
इल्तुतमिश
इल्बरी
लुर्क
ने
शासन
सम्भाला।
इसने
कुतुबमीनार
को
बनवाकर
पूरा
किया
और
राज्य
को
सुदृढ़
व
स्थिर
बनाया।
इल्तुतमिश
ने
'इक्ता' व्यवस्था
शुरू
की।
इसके
तहत
सभी
सैनिकों
व
गैर-सैनिक
अधिकारियों
को
नकद
वेतन
के
बदले
भूमि
प्रदान
की
जातीर्थी।
यह
भूमि
'इक्ता' तथा
इसे
लेने
वाले
'इक्तादार' कहलाते
थे।
इल्तुतमिश
ने
चाँदी
के
'टका' तथा
ताँबे
के
‘जीतल' का
प्रचलन
किया
एवं
दिल्ली
में
टकसाल
स्थापित
की।
वह
दिल्ली
का
पहला
शासक
था
जिसने
'सुल्तान' उपाधि
धारण
कर
स्वतन्त्र
सल्तनत
स्थापित
की।
उसने
बगदाद
के
खलीफा
से
मान्यता
प्राप्त
की
और
ऐसा
करने
वाला
वह
प्रथम
मुस्लिम
शासक
बना।
सिने
चालीस
योग्य
तर्क
सरदारों
के
एक
दल
'चालीसा' तुर्का
ने
'चहलगानी' का
गठन
किया, जिसने
इल्तुतमिश
की
सफलताओं
में
अपना
महत्त्वपूर्ण
योगदान
दिया।
1221 ई.
में
चंगेज
खाँ
के
नेतृत्व
में
मंगोल
सेना, ख्वारिज्म
के
राजकुमार
जलालुद्दीन
मंगबरनी
का
पीछा
करते
हुए
दिल्ली
की
सीमा
तक
आ
पहुंची
थी।
लेकिन
इल्तुतमिश
ने
मंगबरनी
को
शरण
देने
से
इन्कार
करके
चतुराईपूर्वक
दिल्ली
को
मंगोलों
के
आक्रमण
से
बचा
लिया।
इल्तुतमिश
को
भारत
में
'गुम्बद
निर्माण
का
पिता' कहा
जाता
है
(उसने
सुल्तानगढ़ी
का
निर्माण
करवाया।
इल्तुतमिश
ने
रजिया
को
अपना
उत्तराधिकारी
घोषित
किया, क्योंकि
उसके
सभी
पुत्र
अयोग्य
थे।
रजिया सुल्तान (1236-1240 ई.)
रजिया
दिल्ली
की
प्रथम
व
अन्तिम
मुस्लिम
महिला
शासक
थी।
रजिया
ने
सैनिक
वेशभूषा
धारण
की, परदा
करना
बन्द
कर
दिया
और
हाथी
पर
चढ़कर
जनता
के
बीच
जाना
शुरू
कर
दिया।
रिजिया
घोड़े
पर
सवार
होकर
युद्ध
के
मैदान
में
जाती
थी।
रजिया
ने
अबीसीनिया
निवासी
एक
गुलाम
मलिक
जलालुद्दीन
याकूत
को
आवश्यकता
से
अधिक
महत्त्व
दिया
और
उसे
'अमीर-ए-आखुर' अर्थात्
अश्वशाला
प्रधान
के
पद
पर
नियुक्त
कर
दिया।
रजिया
के
बाद
बहराम
शाह, अलाउद्दीन
मसूदशाह
तथा
नासिरुद्दीन
महमूद
(मिनहाजुद्दीन
सिराज
की
तबकात-ए-नासिरी
इन्हीं
को
समर्पित
है)
ने
शासन
किया,
परन्तु
ये
अयोग्य
थे
और
बलबन
ने
सत्ता
हथिया
ली।
बलबन (1266-1286 ई.)
वह
'चालीसा' अर्थात्
'चहलगानी' का
सदस्य
था।
इसका
वास्तविक
नाम
बहाउद्दीन
था
और
यह
ग्यासुद्दीन
बलबन
के
नाम
से
गद्दी
पर
बैठा।
पूर्व
सुल्तान
नासिरुद्दीन
मिहमूद
ने
इस
'उलूग
खाँ' की
उपाधि
प्रदान
की।
बलबन
ने
अपने
विरोधियों
की
समाप्ति
के
लिए
एवं
रक्त' की
नीति
का
अनुपालन
किया।
बलबन
ने
राज्य
में
दैवीय
राजत्व
का
सिद्धान्त
प्रतिपादित
किया।
इसके
अनुसार
बलबन
ने
अपने
आपको
‘नियाबत-ए-खुदाई' अर्थात्
ईश्वर
का
प्रतिनिधि
तथा
'जिल्ल-ए-इलाही' अर्थात्
ईश्वर
की
छाया
बताया।
बलबन
ने
पारसी-नववर्ष
की
शुरुआत
पर
मनाए
जाने
वाले
उत्सव
नौरोजा
की
भारत में
शुरूआत
की।
सिजदा
तथा
पाबोस
(ईरानी
रीतियाँ)
लाग
की।
बलबन
ने
गद्दी
पर
बैठते
ही
'चालीसा' को
नष्ट
कर
दिया।
खिलजी वंश (1290-1320 ई.)
जलालुद्दीन फिरोज खिलजी
(1290-1296 ई.)
खिलजी
वंश
की
स्थापना
जलालुद्दीन
फिरोज
खिलजी
ने
की।
इसने
किलोखरी
को अपनी
राजधानी
बनाया। यह
दिल्ली
सल्तनत
का
प्रथम
शासक
था, जिसने
हिन्दुओं
के
प्रति
उदारवादी
दृष्टिकोण अपनाया।
उसके
शासनकाल
में
मंगोल
दिल्ली
में
बसे
जिन्हें
नवीन
मुसलमान
कहा
गया।
जलालुद्दीन
की
हत्या
उसके
भतीजे
एवं
दामाद
अलाउददीन
खिलजी
ने
धोखे
से
कर
अलाउद्दीन खिलजी (1296-1316 ई.)
अलाउद्दीन
खिलजी
का
जन्म
1266-67
ई
में
हुआ
था।
अलाउद्दीन
के
बचपन
का
नाम
अली
गुरशास्प
था।
उसके
पिता
का
नाम
शिहाबुद्दीन
खिलजी
था, जोकि
जलालुद्दीन
फिरोज
खिलजी
का
भाई
था।
1290 ई.
में
जलालुद्दीन
ने
उसे
अमीर-ए-तुजक
पद
प्रदान
किया।
1291-92 ई.
में
अलाउद्दीन
द्वारा
बलबन
समर्थक
मलिक
छज्जू
के
विद्रोह
का
दमन
किया
गया, इस
उपलक्ष्य
में
जलालुद्दीन
द्वारा
उसे
कड़ा
मानिकपुर
का
सूबेदार
नियुक्त
किया
गया।
1292 ई.
में
सुल्तान
जलालुद्दीन
की
अनुमति
से
अलाउद्दीन
ने
भिलसा
को
लूटा।
1294 ई.
में
अलाउद्दीन
ने
देवगिरि
पर
आक्रमण
किया
(सुल्तान
जलालुद्दीन
से
छिपाकर)
और
अपार
धन
सम्पत्ति
प्राप्त
की।
देवगिरि
की
विजय
से
अलाउद्दीन
की
सुल्तान
बनने
की
इच्छा
प्रबत
हो
उठी
और
उसने
19
जुलाई, 1296 को
धोखे
से
सुल्तान
जलालुद्दीन
की
हत्या
करके
स्वयं
सत्ता
हस्तगत
कर
ली।
.
अलाउद्दीन
का
महान्
सेनापति
मलिक
काफूर
गुजरात
विजय
के
दौरान
नुसरत
खाँ
द्वारा
एक
हजार
दीनार
में
खरीदा
गया, जिससे
उसे
'हजारदीनारी' भी
कहा
जाता
था।
चित्तौड़
के
राणा
रतन
सिंह
की
रानी
पद्मिनी
को
कहानी
का
आधार
बना
कर
1540
ई.
में
मलिक
मोहम्मद
जायसी
ने
'पद्मावत' ग्रन्थ
की
रचना
की।
अलाउद्दीन
दिल्ली
सल्तनत
का
प्रथम
सुल्तान
था, जिसने
दक्षिण
भारत
में
विजय
पताका
फहराई।
अलाउद्दीन
खिलजी
ने
1311
ई.
में
कुतुबमीनार
के
निकट
उससे
दो
गुने
आकार
की
एक
मीनार
बनवाने
का
कार्य
प्रारम्भ
किया
था, परन्तु
वह
उसे
पूरा
नहीं
कर
सका।
अलाउद्दीन
खिलजी
अपनी
बाजार
नियंत्रण
प्रणाली
के
कारण
जाना
जाता
है।
उसके
मूल
नियन्त्रण
के
लिए
दीवान-ए-रियासत, शहना-ए-मण्डी
की
नियुक्ति
की।
वरीद
तथा
मुनहियन
गुप्तचर
विभाग
से
सम्बन्धित
थे।
अलाउद्दीन
का
शासनकाल
मंगोलों
के
भयानक
आक्रमणों
के
लिए
भी
विख्यात
है।
मंगोलों
से
निपटने
के
लिए
अलाउद्दीन
ने
बलबन
की
'लौह
एवं
रक्त' की
नीति
अपनाई।
अलाउद्दीन
ने
अलाई
दरवाजा, हॉज
खास, सीरी
फोर्ट, जमात
खाना
मस्जिद
का
निर्माण
करवाया
तथा
अपनी
राजधानी
सीरी
को.
बनाया।
उसने
'सिकन्दर-ए-सानी' खिताब
हासिल
किया।
इसीलिए
उसे
द्वितीय
सिकन्दर
भी
.कहा
जाता
है।
वह
प्रथम
शासक
था
जिसने
पहली
बार
स्थायी
सेना
गठित
की।
सैनिकों
को
नकद
वेतन
दिए
जाने
की
शु
मात
की।
पहली
बार
घोडो को
दागने
की
प्रथा
तथा
सैनिकों
के
लिए
'हुलिया
प्रणाली' की
शुरूआत
की।
उसके
दरबार
में
अमीर
खुसरो
व
हसन
निजामी
जैसे
कवि
थे।
अमीर
खुसरो
ने
सितार
का
आविष्कार
किया
व
वीणा
को
संशोधित
किया।
अमीर
खुसरो
को
'तोता-ए-हिन्द' कहा
जाता
है।
तुगलक तंग (1320-1414 ई.)
ग्यासुद्दीन तुगलक (1320-1325 ई.)
इसका
असली
नाम
गाजी
मलिक
था, इसने
खुसरो
शाह
के
शासनकाल
को
समाप्त
करे
तगलक
वंश
की
स्थापना
की।
.इसने
सिंचाई
हेतु
कुएँ
एवं
नहरों
का
निर्माण
करवाया।
सम्भवतः
नहरों
का
निर्माण
कराने
वाला
वह
प्रथम
शासक
था।
'ग्यासुद्दीन
ने
दिल्ली
के
निकट
तुगलकाबाद
नामक
नगर
स्थापित
किया
तथा
इसे
अपनी
राजधानी
बनाया।
निजामुद्दीन
औलिया
के
साथ
इसके
कटु
रिश्ते
थे।
निजामुद्दीन
औलिया
ने
इनके
सम्बन्ध
में
कहा
था
कि
'दिल्ली
अभी
है।'
मुहम्मद बिन तुगलक (1325-1351 ई.
)
मुहम्मद
बिन
तुगलक
का
वास्तविक
नाम
जूना
खाँ
था।
वह
मध्यकालीन
सभी
सुल्तानों
में
सर्वाधिक
शिक्षित, विद्वान्
एवं
योग्य
व्यक्ति
था।
उसकी
कई
योजनाओं
की
असफलता
के
कारण
इतिहास
में
उसे
अदूरदर्शी
शासक
के
रूप
में
जाना
जाता
है।
जियाउद्दीन
बरनी
ने
उसके
पाँच
असफल
अभियानों
का
वर्णन
किया
है
(i) राजधानी
का
स्थानान्तरण
इसने
1327
ई.
में
अपनी
राजधानी
दिल्ली
से
देवगिरि
(दौलताबाद)
स्थानान्तरित
की
ताकि
उत्तर
एवं
दक्षिण
भारत
के
सम्पूर्ण
साम्राज्य
को
नियन्त्रित
किया
जा
सके।
(ii) सांकेतिक
मुद्रा
मोहम्मद
बिन
तुगलक
ने
चाँदी
के
सिक्कों
के
स्थान
पर
ताँबे
की
सांकेतिक
मुद्रा
चलायी।
उसका
उद्देश्य
सोने-चाँदी
जैसी
बहुमूल्य
धातुओं
को
नष्ट
होने
से
बचाना
था, परन्तु
बड़े
स्तर
पर
नकली
सिक्कों
का
निर्माण
शुरू
हो
गया।
जिससे
योजना
असफल
हो
गई।
(iii) खुरासान
अभियान
इसके
तहत
सुल्तान
ने
मध्य
एशिया
में
स्थित
खुरासान
राज्य
में
उत्पन्न
अव्यवस्था
का
लाभ
उठाकर
वहाँ
कब्जा
करने
की
सोची।
इसके
लिए
अतिरिक्त
सेना
का
गठन
किया
और
एक
साल
का
वेतन
पेशगी
दे
दिया, परन्तु
खुरासान
में
व्यवस्था
कायम
हो
जाने
के
कारण
सुल्तान
की
यह
योजना
भी
विफल
रही।
(iv) कराचिल
अभियान
कुमाऊँ
पहाड़ियों
में
स्थित
कराचिल
को
विजित
करने
के
उद्देश्य
से
सुल्तान
ने
अपनी
सेना
भेजी, परन्तु
सफलता
के
बाद
वहाँ
सुल्तान
को
भारी
जन
व
धन
की
हानि
उठानी
पड़ी।
(v) कर
वृद्धि
सुल्तान
ने
दोआब
क्षेत्र
में
कर
में
वृद्धि
ऐसे
समय
में
की
जब
वहाँ
पर
अकाल
पड़ा
था
और
फिर
प्लेग
एक
महामारी
के
रूप
में
फैल
गया।
इस
प्रकार
सुल्तान
की
यह
योजना
भी
विफल
रही।
उसने
कृषि
के
विकास
के
लिए
'दीवान-ए-कोही' नामक
एक
नए
विभाग
का
की
स्थापना
की।
उसके
अन्तिम
दिनों
में
लगभग
सम्पूर्ण
द.
भारत
स्वतन्त्र
हो
गया
था
और
विजयनगर, बहमनी, मदुरै
आदि
स्वतन्त्र
राज्यों
की
स्थापना
हो
गई
थीं।
1334 ई.
में
मोरक्को
का
प्रसिद्ध
यात्री
इब्नबतूता
भारत
आया।
उसने
दिल्ली
में आठ
वर्षों
तक
काजी
का
पद
सम्भाला।
इब्नबतूता
ने
भारतीय
समयकालीन
इतिहास
पर
आधारित
पुस्तक
'सफरनामा' (रेहला)
लिखी।
1351 ई.
में
मोहम्मद
बिन
तुगलक
की
मृत्यु
हो
गई
तथा
उसके
बाद
उसका
ने
चचेरा
भाई
फिरोजशाह
तुगलक
गद्दी
पर
बैठा।
फिरोजशाह तुगलक (1351-1388 इ.)
वह
एक
उदार
शासक
था
और
उसने
उलेमा
वर्ग
की
सलाह
मानते
धार्मिक
आधार
पर
एक
इस्लामिक
राज्य
की
स्थापना
की।
फिरोजशाह, सैनिक
व्यवस्था
के
दृष्टिकोण
से
पूरी
तरह
असफल
साबित
हुआ।
उसने
सेना
में
वंशवाद
को
बढ़ावा
दिया
तथा
सैनिकों
को
वेतन
के
रूप
में
भूमि
प्रदान
की।
उसके
शासन
काल
में
सेना
में
भ्रष्टाचार
फैल चुका
था।
उसने
जगन्नाथ
पुरी
मन्दिर
को
क्षतिग्रस्त
किया
तथा
अपने
नगरकोट
अभियान
के
दौरान
ज्वालामुखी
मन्दिर
को
अपमानित
किया।
एरिजुद्दीन
खान
ने
ज्वालामुखी
मन्दिर
से
लाए
गए
1300
पाण्डुलिपियों
का
संस्कृत
से
फारसी
में
‘दलाइल-ए-फिरोजशाही' नाम
से
अनुवाद
किया।
"
फिरोजशाह
अपने
आर्थिक
व
प्रशासनिक
सुधारों
के
कारण
'सल्तनत
काल
का
अकबर' कहलाता
है।
फिरोजशाह
तुगलक
ने
इस्लामी
कानून
द्वारा
स्वीकृत
चार
कर
लगाए।
ये
हैं-
खराज, खुम्स, जजिया
तथा
जकात।
खुम्स
लूटे
गए
माल
पर
लगने
वाला
कर
था।
जिसमें
1/5
भाग
खजाने
का
तथा
4/5
भाग
सैनिकों
का
होता
था।
जजिया
पहले
ब्राह्मणों
का
छोड़कर
सभी
हिन्दुओं
पर
लगाया
जाता
था, उसने
हिन्दुओं
पर
भी
जजिया
लगाया।
फिरोजशाह
ने
हिसार, फिरोजाबाद, फतेहाबाद, फिरोजशाह
कोटला, जौनपुर
आदि
नगरों
की
स्थापना
की।
फिरोजशाह
ने
दो
नए
सिक्के
चलाए–'अधा' (जीतल
का
50
प्रतिशत)
तथा
'भिख' (जीतल
का
25
प्रतिशत)।
उसने फारसी
भाषा
में
अपनी
आत्मकथा
‘फुतुहात-ए-फिरोजशाही' की
रचना
की।
प्रसिद्ध
इतिहासकार
बरनी
उसका
दरबारी
था।
उसने
'तारीख-ए-
फिरोजशाही' तथा
'फतवा-ए-जहाँदारी' नामक
प्रसिद्ध
पुस्तकें
लिखीं।
मलिक
सरवर
ने
नासिरुद्दीन
महमूद
के
शासनकाल
में
जौनपुर
में
शर्की
वंश
की
स्थापना
की।
तैमूर
का आक्रमण
1398 ई. में
मध्य
एशिया
के
दुर्दान्त
आक्रमणकारी
तैमूर
लंग
ने
भारत
पर
आक्रमण
किया।
तैमूर
के
आक्रमण
के
समय, तुगलक
वंश
का
शासक
नासिरुद्दीन
महमूद
तुगलक
था।
तैमूर
ने
निर्दोष
लोगों
का
बेरहमी
से
कत्ल
किया
और
भयंकर
लूटपाट
की।
भारत
पर
आक्रमण
के
दौरान
खिज्र
खाँ
ने
तैमूर
की
बहुत
सहायता
की।
वापस लौटते
समय
तैमूर
ने
जीते
गए
क्षेत्रों
लाहौर, मुल्तान, दीपालपुर
आदि
का
प्रशासन
खिज्र
खाँ
को
सौंप
दिया।
इसी
खिज्र
खाँ
ने
आने
वाले
समय
में
सैयद
वंश
की
स्थापना
की।
सैयद वंश (1414-1451 ई.)
सैयद
वंश
की
स्थापना
खिज्र
खाँ
(1414-1421
ई.)
ने
की
थी।
खिज्र
खाँ
ने
रैय्यत-ए-आला
की
उपाधि
धारण
की।
इन
शासकों
ने
इस
आधार
पर
अपनी
पवित्रता
का
दावा
किया
कि
मोहम्मद
साहब
के
वंशज
भी
सैयद
वंश
कहलाते
हैं।
सल्तनत
काल
में
शासन
करने
वाला
यह
एक
मात्र
‘शिया
वंश' था।
इस वंश
के
मुबारक
शाह
के
शासन
काल
में
याह्या
बिन
सरहिन्दी
ने
प्रसिद्ध
पुस्तक
'तारीख-ए-मुबारकशाही' लिखी।
खिज्र
खाँ
के
उत्तराधिकारी
(मुबारक
शाह, मोहम्मदशाह, अलाउद्दीन,
आलमशाह)
अयोग्य
थे, जिससे
बहलोल
लोदी
को
मौका
मिला
तथा
उसने
लोदी
.वंश
की
स्थापना
की।
लोदी वंश (1451-1526 ई.)
बहलोल लोदी (1451-1489 ई.)
इस
वंश
की
स्थापना
बहलोल
लोदी
ने
की
थी।
दिल्ली
सल्तनत
में
शासन
करने
वाला
यह
प्रथम
अफगान
वंश
था।
यह
वंश
अफगानों
की
महत्त्वपूर्ण
शाखा
शाहूखेल
से
सम्बन्धित
थी।
.
.
उसने
बहलोली
नामक
एक
सिक्का
जारी
किया।
यह
सिक्का
अकबर
के
शासनकाल
तक
प्रचलन
में
रहा।
वह
अपने
सरदारों
को
'मसनद-ए-अली' कहकर
पुकारता
था
तथा
सरदारों
के
खड़े
रहने
पर
स्वयं
भी
खड़ा
रहता
था।
उसने
जौनपुर
के
शर्की
राज्य
को
विजित
कर
दिल्ली
सल्तनत
में
सम्मिलित
किया।
सिकन्दर लोदी (1489-1517 ई.)
यह
लोदी
वंश
का
सर्वश्रेष्ठ
शासक
था।
उसने
कुशल
सैन्य
व्यवस्था
एवं
गुप्तचर
प्रणाली
गठित
की।
सिकन्दर
लोदी
ने
भूमि
मापन
हेतु
‘गज-ए-सिकन्दरी' नामक
पैमाने
का
प्रचलन
किया।
उसने
1504
ई.
में
आगरा
शहर
की
स्थापना
की
और
1506
ई.
में
इसे
अपनी
राजधानी
बनाया।
उसने
कुतुबमीनार
की
मरम्मत
करायी।
सकन्दर
लोदी
'गुलरुखी' के
उपनाम
से
फारसी
में
कविताएँ
लिखता
था।
प्रसिद्ध
सन्त
कबीर
सिकन्दर
लोदी
के
समकालीन
थे।
सिकन्दर
लोदी
के
शासनकाल
में
संगीतशास्त्र
के
श्रेष्ठ
ग्रन्थ
लज्जत-ए-सिकन्दर
शाही
की
रचना
हुई।
इब्राहिम लोदी (1517-1526 ई.)
यह दिल्ली
सल्तनत
अथवा
लोदी
वंश
का
अन्तिम
शासक
था।
इब्राहिम लोदी
ने
दरबार
के
शक्तिशाली
सरदारों
के
दमन
की
नीति
अपनायी
जिससे
वह
अलोकप्रिय
हो
गया।
.
इब्राहिम
लोदी
1526
ई.
के
पानीपत
के
प्रथम
युद्ध
में
बाबर
के
हाथों
मारा
गया
और
दिल्ली
सल्तनत
का
काल
समाप्त
हो
गया।