राष्ट्रपति की शक्तियाँ
राष्ट्रपति
को दो प्रकार की शक्तियां प्रदान की गई है.
(1)
सामान्य शक्तियां
(2)
आपातकालीन शक्तियां
सामान्य शक्तियां
सामान्य शक्तियों
को 7 भागों में बांटा गया है जो कि इस प्रकार हैं
1 कार्यपालिका शक्ति
2 विधायी शक्ति
3 न्यायिक शक्ति
4 वित्तीय शक्ति
5 सैन्य शक्ति
6 कूटनीतिक शक्ति
7 वीटो की शक्ति
कार्यपालिका शक्ति
अनुच्छेद 53 के अन्तर्गत भारतीय संघ की कार्यपालिका शक्ति राष्ट्रपति
में निहित ही गई है अर्थात राष्ट्रपति भारतीय संघ मे कार्यपालिका का प्रमुख होता
है। 🖉🖉
अनुच्छेद -77 अन्तर्गत भारत सरकार के समस्त कार्यो का संचालन राष्ट्रपति
के नाम से किया जाता है।🖉🖉
अनुच्छेद 78 के अन्तर्गत राष्ट्रपति प्रधानमंत्री से प्रशासन के
सम्बन्धो से सूचना प्राप्त कर सकता है तथा प्रधानमंत्री का यह कर्तव्य है कि वह राष्ट्रपति को समस्त
प्रशासन सम्बन्धी सूचनाए उपलब्ध करवाएं🖉🖉
अनुच्छेद- 239 के अन्तर्गत समस्त केन्द्रशासित प्रदेशों का प्रशासन
राष्ट्रपति के नाम से किया जाता है।🖉🖉
अनुच्छेद-263 के अन्तर्गत राज्यों
के मध्य उत्पन्न विवादों के समाधान के लिए एवं केन्द्र तथा राज्यों के
मध्य सहयोग स्थापित करने के लिए
राष्ट्रपति के द्वारा अन्तर्राज्यीय परिषद
का गठन किया जाता है।🖉🖉
भारत में सभी महत्वपूर्ण नियुक्तियाँ राष्ट्रपति के द्वारा की जाती है -
- प्रधानमंत्री तथा मंत्री ☑
- राज्यों मे राज्यपाल ☑
- उच्चतम तथा उच्च न्यायालयों के न्यायधीश ☑
- महान्यायवादी ☑
- नियंत्रक तथा महालेखा परीक्षक ☑
- केन्द्रशासित प्रदेशो मे उप-राज्यपाल तथा प्रशासक ☑
- दिल्ली तथा पुडुचेरी के मुख्यमंत्री ☑
- लोकपाल ☑
- मुख्य निर्वाचन आयुक्त तथा अन्य निर्वाचन आयुक्तों ☑
- संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष तथा सदस्यों ☑
- राष्ट्रपति मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष तथा सदस्यों ☑
- मुख्य चुनाव आयुक्त तथा अन्य सूचना आयुक्तों ☑
- केन्द्रीय विश्सविद्यालयों के कुलपतियों ( स्चयं कुलाधिपति
) ☑
- राष्ट्रपति अनुसूचित जाति , जनजाति एवं पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष तथा सदस्यों। ☑
विधायी शक्ति
अनुच्छेद 79 के अन्तर्गत राष्ट्रपति संसद का अभिन्न अंग बनाया गया है
अथार्त संसद का गठन राष्ट्रपति लोकसभा तथा राज्यसभा से मिलकर बना हौता ।
अनुच्छेद 80 के अन्तर्गत राष्ट्रपति के द्वारा राज्यसभा मे 12 सदस्यों को मनोनीत किया जाता है जिनका सम्बन्ध साहित्य, विज्ञान , कला, समाजसेवा आदि क्षेत्रों से होता है।
अनुच्छेद 85 के अन्तर्गत राष्ट्रपति को संसद के सत्र को आहूत करने उसका
सत्रावसान करने तथा लोकसभा को विघटित करने की शक्ति प्राप्त हैं।
अनुच्छेद 86 के अन्तर्गत राष्ट्रपति को संसद मे अभिभाषण जारी करने तथा
सन्देश भेजने का अधिकार प्राप्त है।
अनुच्छेद 87 के अन्तर्गत राष्ट्रपति के द्वारा हर वर्ष संसद के प्रथम
सत्र मे तथा नई लोकसभा के गठन के पश्चात संसद के दोनों सदनों के एक साथ समवेत होने
पर राष्ट्रपति के द्वारा विशेष अभिभाषण जारी किया जाता है जिससे आने वाले वर्ष मे
सरकार के कार्यक्रम तथा नितियों का उल्लंघन किया जाता है।
अनुच्छेद 108 के अंतर्गत राष्ट्रपति संसद में साधारण विधेयक को लेकर दोनों में गतिरोध की स्तिथि में संयुक्त बैठक बुला सकता है जिसकी अध्यक्षता लोकसभा अध्यक्ष के द्वारा की जाती है
अनुच्छेद 111 के अंतर्गत संसद द्वारा पारित सभी विधेयक राष्ट्रपति की सहमति के लिए भेजे जाते है एवं राष्ट्रपति की अनुमति से ही विधेयक अधिनियक का रूप धारण करता है
अनुच्छेद 123 के अंतर्गत जब संसद सत्र में ना हो तथा ऐसी परिस्थिति विधमान हो गई हो की किसी भी कानून का निर्माण आवश्यक हो गया हो तो राष्ट्रपति को अध्यादेश जारी करने की शक्ति प्राप्त है जिसकी अधिकतम अवधि 06 माह तक तथा सत्र आयोजित होने पर 06 सप्ताह तक बनी रहती है
न्यायिक शक्ति
अनुच्छेद 72 के अंतर्गत राष्ट्रपति को उन सभी मामलों में
1. सैन्य न्यायालयों के द्वारा दिए गए दण्ड में
2.म्रत्युदंड में
3. ऐसे विषय जिसका सम्बन्ध संघ की कार्यपालिका शक्ति के विस्तार से हो |
में क्षमादान , लघुकरण , परिहार , विराम तथा निलंबन कर सकता है
नोट - राष्ट्रपति क्षमादान की शक्ति का प्रयोग मंत्रिपरिषद के परामर्श से करता है जिसकी न्यायालय के द्वारा समीक्षा की जा सके
अनुच्छेद 143 राष्ट्रपति किसी भी सार्वजनिक महत्व पर उच्चतम न्यायालय से परामर्श ग्रहण कर सकता है यधपि यह परामर्श बाह्याकारी नहीं है अथार्त उच्चतम न्यायालय राष्ट्रपति को परामर्श प्रदान करने की लिए बाह्य नहीं है एवं यदि उच्चतम न्यायालय के द्वारा राष्ट्रपति को परामर्श दिया जाता है तो उसे मानाने के लिए भी राष्ट्रपति बाह्य नहीं है
परन्तु यदि राष्ट्रपति ने उच्चतम न्यायालय से सविधान लागू होने के पूर्व की कोई भी संधि , समझौता , भारत सरकार तथा देशी रियासतों के मध्य वार्ता को लेकर परामर्श माँगा है रो वहां पर उच्चतम न्यायालय राष्ट्रपति को परामर्श देने के लिए बाह्य है लेकिन राष्ट्रपति उस परामर्श को मानाने के लिए बाह्य नहीं है
वित्तीय शक्ति
1. राष्ट्रपति के नाम से प्रतिवर्ष बजट प्रस्तुत किया जाता है
2.राष्ट्रपति की पूर्व अनुमति से समस्त धन-विधेयक लोक सभा में रखे जाते है
3.आकस्मिक निधि पर राष्ट्रपति का नियंत्रण होता है
4. अनुच्छेद 280 के अंतर्गत राष्ट्रपति के द्वारा केंद्र तथा राज्यों के मध्य वित्त की समीक्षा के लिए तथा राज्यों को भारत की संचित निधि से अनुदान प्रदान करने के लिए प्रत्येक पांच वर्ष पर वित्त आयोग का गठन किया जाता है
सैन्य शक्ति
राष्ट्रपति तीनो सेनाओ का सर्वोच्च सेनापति होता है एवं एस कारण तीनो सेनाओ के प्रमुख की नियुक्ति राष्ट्रपति के द्वारा की जाती है
संसद की सहमति से राष्ट्रपति के द्वारा ही ही युद्ध की उदाघोसना की जाती है एवं भारत की सेना को अन्यत्र भेजा जाता है
कूटनीति शक्ति
राजदूतों तथा उच्चायुक्तो की नियुक्ति राष्ट्रपति के दद्वारा की जाती है एवं राष्ट्रपति अन्तराष्ट्रीय जगत में भारत का प्रतिनिधित्व करता है
भारत सरकार के द्वारा सभी अन्तराष्ट्रीय संधियाँ तथा समझौता राष्ट्रपति के नाम से किये जाते है
वीटो ( निषेधाधिकार ) की शक्ति
1 . पूर्ण या निरपेक्ष निरपेक्ष निषेधाधिकार - इसके अंतर्गत राष्ट्रपति विधेयक पर अनुमति देनें से इन्कार कर देता है तथा इसका प्रयोग राष्ट्रपति के द्वारा गैर - सरकारी विधेयकों पर किया जा ता है
जैसे - 1954 में डा ० राजेंद्र प्रसाद ने परसू विधेयक पर इसका प्रयोग किया था
2. निलंबनकारी निषेधाधिकार - इसके अंतर्गत राष्ट्रपति विधेयक को पुर्नाविचार के लये लौटा देता है
3.इसके अंतर्गत राष्ट्रपति ना तो विधेयक पर सहमति प्रदान करता है तथा ना ही सहमति देने से इन्कार करता है अथार्त विधेयक राष्ट्रपति के पास सुरक्षित पड़ा रहता है
1986 में डाकघर विधेयक पर राष्ट्रपति ज्ञानी जेल सिंह के द्वारा जेबी निषेधाधिकार का प्रयोग किया गया