भारत की जलवायु ( The Climate Of India ).
भारत की जलवायु उष्णकटिबंधीय मानसूनी जलवायु है | मानसून शब्द अरबी भाषा के ‘ मौसिम’ से बना है , जिसका अर्थ ऋतु होता है अर्थात वर्ष भर में होने वाले समय- समय पर वायु की दिशा में परिवर्तन से है |
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प्रथ्वी के घूर्णन के कारण मौसम
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22 दिसम्बर
इस समय सूर्य की किरणे मकर
रेखा पर गिरती है जिससे उत्तरीय
गोलार्द्ध में ठण्ड तथा दक्षिणी
गोलार्द्ध में गर्मी रहती है
अतः 22 दिसम्बर के समय को को शीत
आयनांत कहते है | अतः इस समय उत्तरीय
गोलार्द्ध में सबसे छोटा दिन तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में सबसे बड़ा दिन होगा |
21 मार्च
इस समय सूर्य की किरणे भूमध्य
रेखा / विषुवत रेखा पर गिरती है अतः इस
समय उत्तरीय गोलार्द्ध तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में दिन
बराबर होंगे | 21 मार्च के समय को वसंत
विषुव कहते है |
21 जून
इस समय सूर्य की किरणे कर्क
रेखा पर गिरती है जिससे उत्तरीय
गोलार्द्ध में गर्मी तथा दक्षिणी
गोलार्द्ध में ठण्ड रहती है
अतः 21 जून के समय को को ग्रीष्म
आयनांत कहते है | अतः इस समय उत्तरीय
गोलार्द्ध में सबसे बड़ा दिन तथा दक्षिणी
गोलार्द्ध में सबसे छोटा दिन होगा |
23 सितम्बर
इस समय सूर्य की किरणे भूमध्य
रेखा / विषुवत रेखा पर गिरती है
अतः इस समय उत्तरीय गोलार्द्ध तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में दिन बराबर होंगे | 23 सितम्बर के समय को शरद
विषुव कहते है |
वायुदाब पेटियाँ
1 यूनिट क्षेत्रफल पर
वायुमंडलीय परतो द्वारा लगने वाले समस्त दाब को वायुमंडलीय दाब कहा जाता है समुद्र
तल पर वायुमंडलीय दाब = 1013.25 मिलिबार होता है
वायुमंडलीय दाब को बैरोमीटर से मापते है
1013 मिलिबार से कम दाब को निम्न
वायुदाब कहते है |
1013 मिलिबार से ज्यादा दाब को उच्च
वायुदाब कहते है |
इस प्रथ्वी पर 7 वायुमंडलीय पेटियाँ पाई जाती है | जिसमे 4 उच्च दाब पेटी तथा
3 निम्न दाब पेटी
विषुवतीय
निम्न वायुदाब पेटी
0० पर बनी
पेटी को विषुवतीय निम्न वायुदाब
पेटी कहते है 5० उत्तरीय तथा 5० दक्षिणीय गोलार्द्ध के बीच के क्षेत्र को डोलड्रम क्षेत्र कहते है इसे शांत
पेटी के नाम से भी जाना जाता
है
शीतोष्ण
उच्च वायुदाब पेटी
30० से 35० उत्तरीय गोलार्द्ध तथा 30० से 35०
दक्षिणी गोलार्द्ध के बीच बनने
वाली पेटी शीतोष्ण उच्च वायुदाब पेटी कहते है |
उपध्रुवीय
निम्न वायुदाब पेटी
60० से 65० उत्तरीय गोलार्द्ध तथा 60० से 65०
दक्षिणी गोलार्द्ध के बीच बनने
वाली पेटी उपध्रुवीय निम्न वायुदाब पेटी कहते है |
ध्रुवीय
उच्च वायुदाब पेटी
90० उत्तरीय तथा 90० दक्षिणी
गोलार्द्ध पर बनने वाली पेटियाँ ध्रुवीय
उच्च वायुदाब पेटी कहते है |
पवने
पवनो के प्रकार
1. भूमंडलीय पवने – तीन
प्रकार की होती है
(a) व्यापारिक पवनें / सन्मार्गी पवनें / पूर्वी पवनें
(b) पछुया पवनें
(c) ध्रुवीय पूर्वी पवने
2. मानसूनी पवने
3. स्थानीय पवने
4. दैनिक पवने
(a) व्यापारिक
पवनें / सन्मार्गी पवनें / पूर्वी पवनें
स्तिथि - 5० – 30० उत्तर तथा दक्षिणी अक्षांशो
के मध्य
ये पवने उत्तरीय
गोलार्द्ध में उत्तर पूर्व से दक्षिण पश्चिम तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में दक्षिण
पूर्व से उत्तर पश्चिम की और प्रवाहित होती है |
(b) पछुया पवनें
स्तिथि - 35०-60० उत्तरीय एवं दक्षिणी अक्षांशो
के मध्य
ये पवने उत्तरीय
गोलार्द्ध में दक्षिण पश्चिम से उत्तर पूर्व तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में उत्तर
पश्चिम से दक्षिण पूर्व की और प्रवाहित
होती है |
40० दक्षिणी अक्षांश –
दहाड़ता चालीसा
50० दक्षिणी अक्षांश-
प्रचंड पचासा
50० दक्षिणी अक्षांश-
चीखता साठा
(c) ध्रुवीय पूर्वी
पवने
स्तिथि - 60०-65० उत्तरीय एवं दक्षिणी अक्षांशो
के मध्य
ये पवने ध्रुवीय उच्च वायुदाब
से उपध्रुवीय निम्न वायुदाब की और पूर्व से पश्चिम की और प्रवाहित होती है |
नोट –
अश्व
अक्षांश
30० से 35० उत्तरीय एवं दक्षिणी अक्षांशो के मध्य पवनो का अभिसरण पाया जाता है |
कोरिपोलिस बल
कोरिपोलिस बल के अनुसार
उत्तरीय गोलार्द्ध में अपने दायें और तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में पाने बाएं और
स्थापित होती है | ऐसा प्रथ्वी के आकार ( गोलाकार ) तथा घूर्णन गति के कारण होता
है |
फैरल
का नियम
फैरल के नियम के अनुसार
दक्षिणी गोलार्द्ध से चलने वाली व्यापारिक पवने यदि भूमध्य रेखा को पार करके
उत्तरीय गोलार्द्ध में जाती है तो उसकी दिशा दक्षिण पश्चिम से उत्तर पूर्व की ओर
हो जाती है और यदि ये पवने उत्तरीय गोलार्द्ध से दक्षिणी गोलार्द्ध में जाती है तो
इनकी दिशा दक्षिण पूर्व से दक्षिण पश्चिम की ओर हो जाती है