Notes || fundamental duty || मूल कर्त्तव्य
प्रष्टभूमि
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मूल कर्त्तव्य का उल्लेख, मूल संविधान में नही था। दुनिया के अधिकांश उदारवादी लोकतांत्रिक देशों के संविधान में मूल कर्त्तव्यों का उल्लेख नहीं है।
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भारत के संविधान में मूल कर्त्तव्य पूर्व रूसी संविधान से प्रेरित है।
संविधान में उल्लेख
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भारत में 42वें संविधान संशोधन द्वारा 'स्वर्ण सिंह समिति की सिफारिश पर 10 मूल कर्तव्यों को संविधान के भाग-4 (A) और अनुच्छेद - 51 A में सम्मिलित किया गया।
मूल कर्त्तव्यों में संशोधन
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86वें संविधान संशोधन, 2002 द्वारा एक नया मूल कर्त्तव्य जोड़ा गया, जिसमें माता-पिता या संरक्षक अपने 6 वर्ष तक की आयु वाले बच्चे को शिक्षा के अवसर प्रदान करेंगे।
मूल कर्त्तव्यों की प्रकृति
- मूल कर्त्तव्य, अवादयोग्य हैं। अतः इन्हें लागू कराने के लिए कोई व्यक्ति न्यायपालिका में नहीं जा सकता।
मूल अधिकार एवं मूल कर्त्तव्य में संबंध
- मूल कर्त्तव्य, अवादयोग्य हैं। लेकिन जब व्यक्ति ने अपने मूल कर्त्तव्य का उल्लंघन किया हो, तो न्यायापालिका उसके मूल अधिकारों को सीमित या प्रतिबंधित कर सकती है।
संविधान में मूल कर्त्तव्य के संदर्भ में उल्लेखित अनुच्छेद
अनुच्छेद-51(क), के अनुसार भारत के प्रत्येक नागरिक का यह कर्त्तव्य होगा कि वह-
1. संविधान का पालन करे और उसके आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्रध्वज और राष्ट्रगान का आदर करे;
2. स्वतंत्रता के लिए हमारे राष्ट्रीय आन्दोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शों को हृदय में संजोए रखे और उनका पालन करे;
3. भारत की प्रभुता, एकता और अखण्डता की रक्षा करे और उसे अक्षुण्ण रखे;
4. देश की रक्षा करे और आह्वान किए जाने पर राष्ट्र की सेवा करे;
5. भारत के सभी लोगों में समरसता और भ्रातृत्व की भावना का विकास करे जो धर्म, भाषा और क्षेत्र या वर्ग पर आधारित सभी भेद-भावों से परे हो तथा ऐसी प्रथाओं का त्याग करे जो स्त्रियों के सम्मान के विरुद्ध हैं।
6. हमारी सामाजिक संस्कृति (Composite Culture) की गौरवशाली परम्परा का महत्व समझे और उसका परिरक्षण करे।
7. प्राकृतिक पर्यावरण को, जिसके अन्तर्गत वन, झील, नदी और वन्य जीव हैं, रक्षा करे और उसका संवर्धन करे तथा प्राणि मात्र के प्रति दयाभाव रखे;
8. वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानववाद और ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करे;
9. सार्वजनिक सम्पत्ति को सुरक्षित रखे और हिंसा से दूर रहे;
10. व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में उत्कर्ष की ओर बढ़ने का सतत प्रयास करे, जिससे राष्ट्र निरन्तर बढ़ते हुए उपलब्धि की नई ऊँचाईयों को छू ले;
11. 6 से 14 वर्ष के आयु के बच्चों के माता-पिता और प्रतिपाल्य के संरक्षक, उन्हें शिक्षा के अवसर प्रदान करें। (इस कर्त्तव्य को संविधान के 86वें संविधान अधिनियम, 2002 की धारा-4 द्वारा जोड़ा गया।)